Monday, January 17, 2011

मुझे थाह नहीं थी.. जीवन की गहराइयों की 
सोचा डुपकी लगा के थाह लेलूं..
जो डुपकी लगाया तो खुद ही..डूब गया....

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Thursday, September 28, 2006








हम सब के वहाँ जाने का एक ही लक्ष्य था कि, गाँव के भीतर जाना और वहाँ की परिस्थितियोँ का साक्षात अवलोकन करना, तथा वहाँ जो भी कार्य चल रही है, उसका अध्ययन करना। हम ऐसी जगह गये थे, जहाँ मुश्किल से एक सरकारी स्कुल है, और उस स्कुल में शिक्षक गण सप्ताह में एक बार भी नहीं आते नाम मात्र का स्कुल है। जब हम वहाँ गये थे तब वह स्कुल तो बन्द थी। नासिक जिल्हा में हर्सुल नाम का एक गाँव है हम उसी जगह गये थे। उस पूरे गाँव में जितने नगर हैं उन्में से, वहाँ कुल ११८ नगर एसे है, जहाँ की एकल विद्यालय प्रकल्प के माध्यम से पूरे गाँव में शिक्षा-दान दी जा रही है। जो की आगामी वर्षों में और २०० नगरों तक पहुँचनें वाली है। इसके अलावा उस पुरे ग्राम के विकास के लिये ग्राम विकास योजना के तहत वहाँ पर रुग्णालय भी चालु है। इस पूरे गाँव को जिन लोगो ने मील कर गोद लिया है। अर्थात पुरे ५ वर्षों तक विद्यालय का शुल्क तथा, रुग्णालय का शुल्क, तथा समय-समय पर जा-जा कर पुरे गाँव के लोगों से मिलना तथा और भी शहर के लोगों को लाना तथा यह प्रकल्प के बारे में बताना एसा करते है।




हम जब उस गाँव में पहुँचने लगे तो वहाँ कि प्रकृति- तथा पहाड , झरनों की जो दृश्य मुझे देखने को मिली वो तो अकथनीय है, मन को लुभावनीय थी, मैंने कई फोटो भी लिये। गाँव पहुँचने के बाद मुझे सच में अनुभव हुआ कि, जो भारतीय संस्कृति आज हमारे किन्चित घरों में भी दुर्लभ है, वह संस्कृति उस पुरे गाँव में आज सम्पुर्ण रुप से जीवित है। हम जैसे ही हर्सुल गाँव के सेवा क्षेत्र जहाँ एकल विद्यालय कार्यरत है, उस नगर में पहुँचे वैसे ही गाँव की एक टोली हमारा स्वागत फुल-माला, चन्दन-टीका, भजन, तथा आरती-पूजा के साथ करते हुए अपने गाँव के परिसर तक ले कर गये। मैंनें तो उसकी एक छोटी सी विडियो भी ली है, विडियो(भाग१, भाग२, भाग३ )। वहाँ पहले हम एकल विद्यालय गये, वहाँ देखे की एक शिक्षिका जो उसी गाँव की रहने वाली ८वीं पास है, वो उस गाँव के २०-२५ बच्चों को पढा रही थीं, तथा पढाने के पाद पसायदानम मन्त्र ले रही (विडियो) थीं। उस दिन हम लोगों को उन्होने पूरी शिक्षण विधी का एक रूप दिखलाया। छोटे-छोटे बच्चों को नाच (विडियो) , गाने , कला, कहानी, चित्र के माध्यम से कई गुढतम विषयो से उनका परिचय कराने की कला हम देखने को पाये। एकल विद्यालय की जो पूरी टीम है, वो इन शिक्षकों का भी एक वर्ग लेते हैं, जिसमे वो शिक्षकों को सीखाते हैं कि, किस तरह से बच्चों से बातें करना तथा कैसे उन्हे सिखाना। मैं, तथा और २ जने मिल कर श्रीमान दिलीप गोटखिन्धीकर जी, जो शिक्षकों क वर्ग लेतें हैं, उन्से बातें(विडियो) की। फिर हम सब ५-५ जने का अलग-अलग टोली करके पूरे नगर के २-३ घरों में जाकर बैठा, उनका दु:ख-सुख सुना, उनसे बातें कीं, हमारे ऐसे करने से उन लोगों की खुशी - प्रसन्नता की परिचय तो उन्के मुख पर देखते ही पता चलता था। वहाँ के लोगो ने हमारे खाने का व्यवस्था किया था। ...




अनुभव तो बहुत कुछ रहा पर मैं ईश्वर को धन्यवाद देता हूँ कि, इस पावन कार्य का साक्षात अनुभव करने का मुझे सौभाग्य प्राप्त हुआ।हम मुम्बई से १२ जने गये थे कुछ Patni company के थे , एक Polaris company के सज्जन, और दो परिवार अपने छोटे-छोटे बच्चों के साथ थे। इस तरह की हमारी यहाँ की टोली थी। इसके उपरान्त नासिक से भी १० लोग आये थे। यह गाँव हर्सुल है, इस गाँव को एक सज्जन श्रीमान सुनिल चान्डक जी, तथा उन्के टोली के अन्य सदस्य ने गोद लिया है। वो अपने निजी जीवन मे Entrepreneurship development Academy के निर्देशक (Director) हैं, उनकी कार्यालय नासिक में ही है।हमारी मुम्बई की IT group जो हर्सुल गाँव गई थी, ने एक और गाँव जो की ठाणे, जिल्हा में आता हो, उसे गोद लेने के लिये कटिबध्द हुई है। इसमें आप सब जो भी इच्छुक हैं भाग लेना चाहें तो, वो हमें जरुर सम्पर्क करें। हमारी टोली में से दो सदस्य इस शनिवार को ठाणे के सेवा ग्राम जिसे हमें adopt करना है उसका अवलोकन करने जाएगी, इसके बाद हम सब पुनः इसी गाँव में जायेंगे।




स्वामी विवेकानन्द जी ने कहा था: "If the poor boy cannot come to education education must go to him"




सम्पर्क:




श्रीमान अजेय गोटखिन्धीकर [न० +91-9820972966 ( ९८२०९७२९६६) ]

Thursday, August 17, 2006

जोदी तोर डाक शुने केउ ना...शे, तोबे एक्ला चोलो रे ---(२)
तोबे एक्ला चोलो, एक्ला चोलो, एक्ला चोलो, एक्ला चोलो रे... ---(२)
जोदी तोर डाक शुने केउ ना...शे, तोबे एक्ला चोलो रे...

जदि केउ कथा न कोए, ओ रे ओ...रे ओ अभागा, केउ कथा न कोए
जदि शबाए थाके मुख फिरायए, शबाए करे भए ---(२)
तबे परान खुले...ओ तुई मुख फुटे तोर मनेर कथा, एकला बलो रे... ---(२)
जोदी तोर डाक शुने केउ ना...शे, तोबे एक्ला चोलो रे...

जदि शबाए फिरे जाये, ओ रे ओ...रे ओ अभागा, शबाए फिरे जाये
जदि गहन पथे जाबार काले, केउ फिरे ना चाए ---(२)
तबे पथेर कांटा...ओ तुई रक्तोमाखा चरोनतले एकला दलो रे... ---(२)
जोदी तोर डाक शुने केउ ना...शे, तोबे एक्ला चोलो रे...

जदि आलो ना धरे, ओ रे ओ...रे ओ अभागा, आलो ना धरे
जदि झड-बादोले आन्धार राते दुयार दाये घरे ---(२)
तबे बज्रानले...आपन बुकेर पान्जर जालीये निये एकला जलो रे... ---(२)
जोदी तोर डाक शुने केउ ना...शे, तोबे एक्ला चोलो रे...

for audio mp3 of "jadi tor daak shune keu naa aashe.." click to listen Listen

भारत कोई जमीन का टुकडा नहीं जीता जागता राष्ट्र पुरुष है,

हिमालय इसका मस्तक है,गौरीशंकर शिखा है,

कश्मीर किरीट है, पन्जाब और बंगाल दो विशाल कन्धे है,

दिल्ली इसका दिल है, विन्ध्याचल कटि है,

नर्मदा कर्धनी है, पुर्वी और पशचिमी घाट इसकी दो विशाल जंघाए है,

कन्याकुमारी इसके चरण है, सागर इसके पग पखारता है,


पावस के काले-काले मेघ इसके कुन्तल केश हैं, मलयानिल चँवर डुलाता है,

चाँद और सुरज इसके आरती उतारतें हैं,यह वंदन की भुमी है,

यह अभिनन्दन की भूमी है, यह तर्पण की भूमी है,

यह अर्पण की भूमी है, इसका बिन्दु-बिन्दु गंगाजल है,

इसका कंकर-कंकर शंकर है, हम जीयेंगे तो इसके लिए,

मरेंगे तो इसके लिए, मरजाने के बाद हमारी अस्थियाँ

अगर गंगाजी में डुबो दि जाए, तो उसमें से एक ही आवाज निकलेगी

भारत माता की जय! भारत माता की जय!! भारत माता की जय !!!

-अटल बिहारी वाजपयी

Wednesday, August 16, 2006